जिस क्रिया द्वारा ताप बिना किसी भौतिक माध्यम के एक वस्तु से दूसरी वस्तु में प्रवेश करता है उस क्रिया को विकिरण कहते हैं। वस्तुतः प्रत्येक वस्तु एक निश्चित तापमान पर अपनी ऊष्मा को विभिन्न प्रकार की तरंगों द्वारा छोड़ती है। यही विकिरण के कई रूप हैं। जब कोई वस्तु किसी तापमान पर हर प्रकार की तरंगों द्वारा अधिकतम ताप छोड़ती है तो उसे ब्लेक बॉडी (Black Body) कहा जाता है और उससे होने वाले विकिरण को कृष्णिका विकिरण (Black body Radiation) कहते हैं। पृथ्वी के धरातल से होने वाला विकिरण दूसरे प्रकार का होता. है।
किन्तु उसी तापमान पर जब कोई वस्तु केवल कुल विशेष तरंगों के रूप में ही विकिरण करती है तो उसे वर्णात्मक विकिरण (Selective Radiation) कहा जाता है। वायुमण्डल की कुछ गैसें वरणात्मक विकिरण ही करती हैं। पृथ्वी सौर्थिक ऊर्जा का 51% भौग प्राप्त करती है। सूर्य से आने वाली यह ऊर्जा सूक्ष्म लहरों के रूप में आती है जो धरातल द्वारा ग्रहण की जाती है। धरातल इसे ग्रहण कर ऊष्मा में बदल देती है। सौर्थिक ऊर्जा को इस प्रकार ग्रहण करने और उसे ऊष्मा में बदल देने से धरातल गरम हो उठता है। फलस्वरूप तप्त धरातल पुनः ऊष्मा का विकिरण करने लगता है। यद्यपि वायुमण्डल सूक्ष्म लहरों के रूप में आने वाली सौर्थिक ऊर्जा को अपेक्षाकृत बहुत ही कम मात्रा (15%) में सीधे तौर पर ग्रहण कर पाता है। किन्तु वह लम्बी लहरों के रूप में धरातल से निकलने वाली पार्थिव ऊष्मा का 90% भाग ग्रहण कर लेता है। जलवाष्प ऊष्मा को ग्रहण करने वाली प्रमुख गैस है। जलवाष्प द्वारा ऊष्मा को ग्रहण करने की इस शक्ति को धरातल से प्रसारित होने वाली ऊष्मा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हम देखते हैं कि मरुस्थलों में जहाँ वायु प्रायः शुष्क और आकाश स्वच्छ रहता है रात्रि में बहुत शीघ्र तापमान नीचे गिर जाता है। वस्तुतः वायुमण्डल का प्रभाव खिड़की के काँच के समान होता है जो सौर्यिक विकिरण की लघु तरंगों को तो प्रविष्ट होने देता है किन्तु पार्थिव विकिरण की दीर्घ तरंगों को बाहर निकलने से रोक देता है। इस तरह वायुमण्डल धरातल के तापमान को ऊँचा बनाए रखने में
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सहायक होता है। वायुमण्डल के इस प्रभाव को 'हरित गृह प्रभाव' कहा जाता है। जलवाष्प सौर्थिक तथा पार्थिव दोनों प्रकार के विकिरण का सर्वाधिक अवशोषण करती है, किन्तु यह वायुमण्डल के निचले भाग में ही सीमित है। फलतः ऊँचाई के साथ-साथ सौर्थिक तथा पार्थिव दोनों ही प्रकार का विकिरण बढ़ता जाता है। इसीलिए ऊँचे पर्वतों को पृथ्वी की विकिरण खिड़की (Radiation Window) कहा जाता है। वायुमण्डल के ऊपरी भाग में कई प्रकार की गैसें कार्बन, ऑक्सीजन, व ओजोन आदि व धूल कण सूर्यातप को ग्रहण करते हैं और गरम होकर स्वयं ऊष्मा का प्रसारण करते हैं। इनके द्वारा प्रसारित ताप के धरातल को गरम करने में महत्वपूर्ण भाग लेता है। इस प्रकार यह पृथ्वी से नष्ट होने वाली ऊष्मा को बनाये रखने में सहयोग देता है। उष्ण कटिबन्ध के बाहर जाड़े के मौसम में यह गरमी का सबसे बड़ा साधन है।
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