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एक आदर्श नियोजन प्रदेश की विशेषताएँ Characteristics of An Ideal Planning Region

एक आदर्श नियोजन प्रदेश की विशेषताएँ (Characteristics of An Ideal Planning Region) प्रदेश एक सीमित इकाई है जिसकी सीमाएँ, भौतिक, प्रशासनिक, राजनीतिक आदि हो सकती हैं  जिसके स्वयं के विशेष लक्षण होते   हैं                           

                     

 जो प्रदेश में सम्मिलित सभी क्षेत्रों को जोड़कर रखते हैं, इसलिए इसे एक जीवीय सम्पूर्ण इकाई की संज्ञा दी जा सकती है, टेलर के अनुसार, "नियोजन प्रदेश एक ऐसा क्षेत्र होता है जो अपने आस-पास के क्षेत्रों से बहुत भिन्न होते हुए उनसे जुड़ा रहता है क्योंकि अभिकेन्द्रीय शक्तियाँ उपस्थित होती हैं या मानव जनित। अतः नियोजन प्रदेश एक ऐसी इकाई होती है जिसे नियोजन का आधार बनाया जा सकता है, क्योंकि एक तरफ तो उसमें स्वयं के कुछ लक्षण होते हैं जो अपने आस-पास के क्षेत्र से भिन्न होते हैं, दूसरी ओर यह क्षेत्रों से भी इस प्रकार से एकीकरणीत होता है कि उनके सन्दर्भ के बिना सही प्रकार से जाना ही नहीं जा सकता। जैसे मानव शरीर रचना स्वयं मैं एक सम्पूर्ण तन्त्र है जिसके अन्दर अनेक उपतन्त्र होते हैं। यथा वृक्क उप-तन्त्र (Renal Sub-system) स्नायु उप-तन्त्र (Nervous sub-system), श्वसन उप-तन्त्र (Respira- tory sub-system), पाचन उप-तन्त्र (Digestive sub-system) आदि । ये सभी उप- तन्त्र मानव शरीर स्वयं में सम्पूर्ण तन्त्र होने के बावजूद मानव शरीर से इस तरह जुड़े होते हैं कि यदि इनमें से किसी भी उप-तन्त्र में कोई समस्या उत्पन्न होती है तो सम्पूर्ण मानव शरीर प्रभावित होता है। ठीक इसी तरह प्रादेशिक तन्त्र में भी किसी एक प्रदेश विशेष की गतिविधियों का प्रभाव सम्पूर्ण प्रादेशिक तन्त्र पर दृष्टिगत होता है। अतः नियोजन प्रदेश एक ऐसा प्रदेश है जिसका प्रत्येक अंश सभी प्रदेशों से इस तरह जुड़ा होता है जैसे कि सभी प्रदेश अपने विभिन्न अंशों से ऐसे प्रदेशों में कार्यात्मक अखण्डता Functional Unity) पायी जाती है जिस तरह महानगरीय प्रदेशों में मिलती है। (राष्ट्रीय राजधानी प्रदेश दिल्ली)। इनमें समस्या और क्षमता की ऐसी समानताएँ मिलती हैं। उदाहरण के लिए भारत का थार मरूस्थल। इनमें आर्थिक अखण्डता विद्यमान होती है। जैसे छोटा नागपुर प्रदेश में। अतः नियोजन प्रदेश एक स्वरचित जीवित जीव के समान होता है जिसकी एक जीवन रेखा होती है। इसका पोषण एक अभिकेन्द्रीय शक्तियों का जन्म प्रादेशिक स्पेस को पैदा करते हैं जिनको नियोजन के लिए प्रयोग किया जाता है।

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नियोजन प्रदेश की संकल्पना में निम्नलिखित आदर्श विशेषताएँ पायी जाती हैं-


(i) सीमित क्षेत्रफल (Limited Size) - नियोजन प्रदेश का क्षेत्रफल सीमित होना चाहिए। इसका आकार न तो बहुत छोटा होना चाहिए न ही बहुत बड़ा। नियोजन प्रदेश का आकार उसके माप तथा उद्देश्य पर निर्भर करता है जैसे- खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अनुसन्धान हेतु अन्तरिक्ष का उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में विभाजन किया जा सकता है। पर्यावरण के नियोजन हेतु वातावरण को क्षोममण्डल तथा समताप मण्डल में बाँटा जाता है। शीतोष्ण व उष्ण कटिबन्ध भी विश्व स्तरीय प्रदेश है। शीत मरूस्थल भी एक तरह का प्रदेश है। जिसका नियोजन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है। अर्न्तमहाद्वीपीय स्तर के प्रदेशों में मानसून प्रदेश विशेष महत्वपूर्ण है। जिसका विस्तार एशिया, अफ्रीकां तथा आस्ट्रेलिया महाद्वीपों पर है। दामोदर घाटी प्रदेश एक अन्तरराज्यीय प्रदेश का उदाहरण है। अतः यह कथन सत्य है कि एक प्रदेश के क्षेत्रफल के बारे में कोर मानकीकरण सम्भव नहीं है। क्योंकि आज नियोजन देश की सीमाओं में सिमटकर रह गया है। इसलिए नियोजन प्रदेश का क्षेत्रफल सीमित होना चाहिए।


(ii) सीमाओं का लचीलापन (Flexibility of Boundaries) - नियोजन प्रदेश की सीमाएँ स्थाई नहीं होनी चाहिए। ये सदैव समयानुसार परिवर्तित होती रहनी चाहिए। जैसे नदी घाटी प्रदेश की सीमाएँ अस्थाई हो सकती हैं जो नदी प्रवाह की दिशा में परिवर्तन से प्रभावित होती रहती हैं। इसके विपरीत महानगरीय प्रदेश तीव्रता से परिवर्तित होने वाली प्रादेशिक सीमाओं का प्रमुख उदाहरण हैं। मौसम सम्बन्धी प्रदेश भी इस प्रकार के प्रदेशों के उदाहरण हैं जिनकी सीमाएँ सदैव परिवर्तित होती रहती हैं। अतः नियोजनों को नियोजन प्रदेश की सीमाएँ निर्धारित करते समय ध्यान देना चाहिए कि वे कम-से-कम परिवर्तनशील हों। 

(iii) अविच्छिनित आकार (Compact contiquous Shape) - नियोजन प्रदेश एक इकाई के रूप में होना चाहिए न कि बिखरा हुआ। उसका आकार सघन होना चाहिए उदाहरण के लिए जापान (ये बहुत से द्वीपों का समूह है), भारत का अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह आदि क्षेत्रों में यह समस्या आती है। अतः अविच्छिनित प्रदेश में परियोजना तैयार करने में आसानी होती है।


(iv) प्राकृतिक ससंजन (Natural Cohesion) - प्रदेश के सभी भाग एक-दूसरे से जुड़े हों तथा उनकी सभी परिस्थितियाँ आपस में जुड़ी हुई होनी चाहिए। उनमें परस्पर लगाव होना चाहिए। परिस्थितियाँ भी एक समान होनी चाहिए। नदी घाटी परियोजना में प्राकृतिक ससंजन अधिक मिलता है। जैसे- दामोदर घाटी प्रदेश, छोटा नागपुर पठार (खनन कार्य सम्पूर्ण क्षेत्र में होता है)।

 (v) जीवन-पोषण सक्षमता (Economic Viability) - प्रदेश स्वयं में जीवन पोषण के लिए आर्थिक रूप से सम्पन्न होना चाहिए। प्रादेशिक नियोजन स्वयं में एक महँगी प्रक्रिया है। इसी कारण प्रदेश का आर्थिक रूप से सक्षम होना जरूरी है। आर्थिक क्रियाएँ एक जैसी होनी चाहिए। कुछ प्रदेश अनेक समस्या के कारण आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं ऐसे  समस्याग्रस्त प्रदेश यदि अन्य लक्षण पर खरे उतरते हैं तो मात्र आर्थिक सक्षमता की कमी के कारण उनको नियोजन प्रदेश न मानना शायद उचित नहीं होगा। इसी आर्थिक सक्षमता के साथ जुड़ा आर्थिक ससंजन का लक्षण है जिसे आर्थिक एकता कहते हैं। आर्थिक शक्तियाँ प्रदेश के विभिन्न भागों को आपस में जोड़कर रखती हैं तो भी इस सम्पूर्ण प्रदेश को नियोजन के लिए एक ही इकाई माना जा सकता है। जैसे खनन प्रधान प्रदेश या कृषि प्रधान प्रदेश में सम्पूर्ण जीवन प्रदेश की इसी विशेष आर्थिक शक्ति के गुजर जाता है। जैसे- भारत में छोटा नागपुर पठार क्षेत्र, नीदरलैण्ड में पोल्डर क्षेत्र आदि।


(vi) सामाजिक अनुरूपता (Social Harmony) - स्थानीय लोगों में सामाजिक रूप से सामंजस्य अर्थात् समानता होनी चाहिए। मध्य भारत में अनुसूचित जनजातियाँ इसका प्रमुख उदाहरण हैं या भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य जहाँ ईसाई अनुसूचित जनजातियों की संख्या बहुत अधिक है। यहाँ सामाजिक समानता पाई जाती है उनके सांस्कृतिक कार्यक्रम व रीति- रिवाज एक समान हैं। इसी कारण उनके मध्य एकरूपता देखने को मिलती है। इस कारण इन प्रदेशों को नियोजन प्रदेश माना जाता है।


(vii) कार्यात्मक एकता (Functional Unity) - नियोजन प्रदेश में वास्तविक प्रादेशिकता का होना जरूरी है। इसके लिए तीन तत्व भौतिक, सामाजिक स्थिति व आर्थिक पृष्ठभूमि में एकता होनी चाहिए तभी कार्य एक समान होंगे। भौतिक तत्व के आधार पर नदी घाटी उपागम है। सामाजिक स्थिति के लिए सामाजिक व्यवहार एक समान होना चाहिए। अनुसूचित जनजातियाँ जिसकी सामाजिक परिस्थितियाँ एक समान हैं। जबकि पश्चिमी बंगाल में पटसन उत्पादन तथा छोटा नागपुर पठार में खनन आर्थिक पृष्ठभूमि के तत्व हैं। ऐसे प्रदेशों में अभिकेन्द्रीय शक्तियाँ पायी जाती हैं। विभिन्न भाग किसी-न-किसी रूप में एक-दूसरे से बंधे होते हैं।


(viii) समस्याओं की एकरूपता (Similarity Problems)- कभी-कभी ऐसा देखने में पाया गया है कि किसी एक विस्तृत क्षेत्र में समस्याओं की एकरूपता पायी जाती है, जिसके कारण प्रदेश के विभिन्न भागों में एकता बनी रहती है। ऐसे प्रदेश भी नियोजन प्रदेश कहलाते हैं। जैसे-थार मरूस्थल क्षेत्र, कच्छ का रन प्रदेश, जहाँ प्रत्येक प्रदेश स्वयं में अपने प्रकार से समस्याग्रस्त है। ऐसे प्रदेश भी नियोजन की दृष्टि से उत्कृष्ट प्रदेश माने जाते हैं, क्योंकि इनकी समस्याएँ नियोजन का केन्द्र बन जाती है।


(xi) प्रादेशिक संचेतना (Regional Consciousness) - नियोजन प्रदेश के इस लक्षण का अर्थ होता है कि प्रदेश के निवासी प्रदेश को इतना अपना समझते हैं कि इसके विकास के लिए कुछ भी करने हेतु तैयार होते हैं। इस तरह प्रदेश से लगाव ही एक उच्च कोटि की अभिकेन्द्रीय शक्ति बन जाता है।


(x) प्रशासनिक सुविधा (Administrative Convenience) - प्रायः नियोजन प्रदेश की सीमाओं तथा प्रशासनिक सीमाओं में अन्तर होता है। इसलिए प्रशासनिक सुविधा भी एक महत्वपूर्ण लक्षण बन जाता है। प्रदेश तो प्रकृति में पहले से ही होते हैं। हमें केवल अस्तित्व का अनावरण करना होता है। प्रशासनिक सीमाओं और नियोजन प्रदेश सीमाओं में अन्तर होना स्वभाविक है, क्योंकि अब ज्यादातर आँकड़े प्रशासनिक इकाईयों हेतु निर्धारित किये जाते हैं और नीतियाँ भी इसी प्रकार की इकाईयों हेतु निर्धारित की जाती हैं। उन्हें कार्यान्वित भी प्रशासनिक सीमाओं में सीमित क्षेत्रों के अनुसार किया जा सकता है अतः यदि जहाँ तक सम्भव हो नियोजन प्रदेश की सीमाएँ प्रशासनिक सीमाओं के अनुरूप बना लें तो   इसमें प्रशासनिक सुविधा तो होगी ही, परियोजनाओं को कार्यान्वित करने में भी सुविधा होगी। किसी भी प्रादेशिक तन्त्र की गुणवत्ता उसके लिए प्रयोग में लाए जा रहे आँकड़ों की गुणवत्ता तथा उपलब्धता पर निर्भर करती है।



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