मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता आन्दोलन के स्त्रोत (Sources of Freedom struggle in Madhya Pradesh) स्त्रोत वह माध्यम है जो किसी भी विषय वस्तु की व्यापक एवं प्रामाणिक जानकारी तथ्यों के साथ हमारे सामने रखते हैं। स्त्रोत में निहित ऐतिहासिक तथ्य इतिहास की रीढ़ की हड्डियों के समान हैं। ऐतिहासिक तथ्य ठोस, कठोर तथा यथार्थ परक होते हैं। इन्हीं तथ्यों की विश्लेषणात्मक व्याख्या इतिहास लेखन का आधार है।
किसी भी राष्ट्र के राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास उस राष्ट्र की अमूल्य धरोहर होता है। राष्ट्रीय आन्दोलन की घटनाएँ, उससे जुड़े देश-भक्तों का बलिदान, स्मारक, साहित्य आदि उस देश के लोगों के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं। इसके साथ ही इन स्त्रोतों से राष्ट्रीय भावना भी सतत् जीवन्त रहती है। मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता संघर्ष से सम्बन्धित तथ्यों के प्रमुख दो स्त्रोत हैं-(अ) प्राथमिक स्त्रोत (ब) द्वितीय स्त्रोत।
(अ)प्राथमिक स्त्रोत
प्राथमिक , वे स्त्रोत कहलाते हैं, जो विषयवस्तु से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। प्राथमिक स्त्रोत का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
1. अभिलेखागार- मध्यप्रदेश स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास लेखन में अभिलेखागार एवं पुस्तकालयों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अभिलेखागारीय दस्तावेज मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता आन्दोलन की जानकारी का प्रमुख आधार है। अभिलेखागारीय दस्तावेजों के अन्तर्गत सरकारी फाइलें, पुराने समाचार पत्र, प्रकाशित तथा अप्रकाशित शोध पत्र, निजी दस्तावेज जैसे डायरी, पत्र, आत्मकथा एवं माइक्रो फिल्म आदि आते हैं। इसके अतिरिक्त राजस्व रिकार्ड, फॉरेस्ट रिकार्ड, सैन्य विभाग के कागजात तथा अन्य विभागों के रिकार्ड भी मध्यप्रदेश स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख स्त्रोत हैं। ये कागजात एवं रिकार्ड निम्नलिखित स्थानों में प्राप्त होते हैं-
2. राष्ट्रीय अभिलेखागार - स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्धित रिकार्डों का अध्ययन करने का प्रमुख अभिलेखागार नई दिल्ली में स्थित है। यहाँ वैदेशिक पत्र व्यवहार एवं सेना की फाइलों के अतिरिक्त केन्द्रीय एवं प्रान्तीय सरकारों के पत्र भी उपलब्ध हैं। इस अभिलेखागार से राष्ट्रीय आन्दोलन की विभिन्न घटनाओं, उनके स्थान, समय व सरकारी कार्यवाही के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इस अभिलेखागार में क्रान्तिकारियों पर चलाये गये मुकदमों के दस्तावेज भी उपलब्ध हैं।
3. प्रान्तीय अभिलेखागार- मध्यप्रदेश का प्रान्तीय अभिलेखागार भोपाल में स्थित है। इस अभिलेखागार में मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्धित दस्तावेज उपलब्ध हैं। यहाँ पर लगभग दो-ढाई लाख फाईलें हैं। अभिलेखागार में 400 फाईल फारसी भाषा में लिखी गई हैं। कागजात-ए-गदर का अंग्रेजी अनुवाद छः खण्डों में प्रकाशित हो चुका है। इस अभिलेखागार में मध्यप्रदेश की रियासतों की स्थिति और संघर्ष की जानकारियाँ एवं उस समय किए गए पत्र व्यवहार के दस्तावेज भी उपलब्ध हैं।
4. मध्यप्रदेश सचिवालय रिकार्ड- ब्रिटिशकालीन भारत अनेक प्रान्तों में विभक्त था। प्रत्येक प्रान्तों में सरकारी कार्यों का लेखा-जोखा रखा जाता था। विभिन्न क्षेत्रों के स्थानीय अधिकारियों द्वारा समय-समय पर अपने उच्च अधिकारियों को स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बन्धित घटनाओं की जानकारी भेजी जाती थी। उनके रिकॉर्ड प्रान्तीय सचिवालयों में रखे जाते थे। इस प्रकार के रिकॉर्ड मध्यप्रदेश के प्रान्तीय सचिवालय में उपलब्ध हैं। इन रिकॉर्डों से मध्यप्रदेश में स्वतन्त्रता आन्दोलन की महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है।
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5. प्राइवेट पेपर (व्यक्तिगत पत्र) व्यक्तिगत पत्रों का मध्यप्रदेश में स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। व्यक्तिगत पत्र दो प्रकार के हैं- एक वे पत्र जो एक क्रान्तिकारी अपने दूसरे क्रान्तिकारी साथियों को स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बन्धित योजनाओं के बारे में लिखते थे तथा दूसरे वे व्यक्तिगत पत्र होते थे जो भारत में रहने वाले अंग्रेज इंग्लैण्ड व यूरोप में अपने मित्रों को लिखते थे, जिसमें भारत की राजनीतिक गतिविधियों तथा घटनाक्रमों का उल्लेख होता था। अस्तु ये व्यक्तिगत पत्र स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख स्त्रोत हैं।
इन पत्रों से भोपाल में सन् 1857 के समय की घटनाओं पर महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। भोपाल के योद्धा अमर शहीद आजम फजिल मोहम्मद खाँ के बलिदान का समाचार जब झाँसी की रानी को मिला तो उन्होंने भोपाल की सिकंदर बेगम को चेतावनी देते हुए पत्र लिखा है कि जैसे ही मैं अपने उद्देश्य में सफल हो जाऊँगी, मेरी तलवार तुम्हारी अंग्रेजी परस्ती एवं वफादारी की सजा तुम्हें अवश्य देगी।
6. समाचार पत्र- समाचार पत्र सार्वजनिक प्रतिवेदन की श्रेणी में आता है। अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होने के कारण इसके द्वारा सभी प्रकार की गतिविधियों की जानकारी मिलती है। मध्यप्रदेश स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्राथमिक स्त्रोतों में समाचार पत्रों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों में अनेक समाचार पत्रों का प्रकाशन हुआ, जिनमें स्थानीय स्तर पर स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बन्धित घटित होने वाली घटनाओं का उल्लेख होता था।
मध्यप्रदेश से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में विकोरिया सेवक (जबलपुर), सरस्वती विलास (नरसिंहपुर), सी.पी. न्यूज (नागपुर), इंडिपेन्डेंट (नागपुर), भोसला पत्र (नागपुर), भोंसला पत्र 1892 में बंद हो गया था, उसके स्थान पर "देश सेवक पत्र" निकला। प्रजा हितैशी (राजनाद गाँव), राजनाद गजट (राजनाद गाँव), गोरक्षक (नागपुर), तबलग उर्दू पत्र (जबलपुर), न्याय रत्न (छिंदवाड़ा), सुबोध सिंधु (खण्डवा), छत्तीसगढ़ मित्र (रायपुर), शुभ चिंतक (जबलपुर), बरार टाइम्स (नागपुर) आदि हैं। मध्यप्रदेश में समाचार पत्रों का इतना विस्तार हुआ कि सन् 1904 तक आते-आते जबलपुर टाइम्स, कार्मसेवक, प्रभात आदि पत्रों का जन्म हुआ। इस समय इस क्षेत्र में 16 छापेखाने थे। सन् 1906 में हिन्द केसरी और हिन्दी ग्रंथमाला मासिक पत्र निकले। सन् 1908 में इन दोनों पत्रों पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया और इनके प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मध्यप्रदेश में सन् 1910 और 1920 की अवधि में अनेक समाचार पत्रों का प्रकाशन हुआ, जिनमें प्रमुख हैं- सी.पी. स्टैण्डर्ड (कटनी), सफर-ई-बरार (अमरावती), सुमित (वर्धा), मित्रमण्डली समाचार पत्र (सोहागपुर), पतित मित्र (नागपुर), भारत (वर्धा), धर्मप्रभा (खण्डवा), भारत (अमरावती), शारदा विनोद (जबलपुर) आदि।
7. समकालीन साहित्य- समकालीन साहित्य स्वतन्त्रता आन्दोलन के मुख्य स्त्रोत हैं। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भी साहित्य लिखे गये। ये साहित्य मध्यप्रदेश स्वतन्त्रता आन्दोलन की महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराते हैं। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान लिखे गये साहित्य हमें अंग्रेजों की नीतियों से परिचित तो कराते ही हैं, साथ ही इन साहित्यों ने भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने का कार्य किया। मध्यप्रदेश में इस दौरान वे साहित्यकार जिन्होंने अपनी रचनाओं से देश-प्रेम की सशक्त धारा को प्रवाहित करने में अपना योगदान दिया, उनमें जबलपुर के पंडित कामता प्रसाद शुक्ल, गढ़ा कोटा निवासी पंडित जानकी प्रसाद द्विवेदी, राय बहादुर हीरालाल (कटनी) सागर के सैयद अमीर अली, रायपुर के पंडित माधवराव, पंडित लोचन प्रसाद पाण्डेय बालपुर निवासी, जबलपुर के पंडित सुखराम चौबे, अकोला के रघुनाथ माधव, नागपुर के यादव राव, खैरागढ़ के श्री पदुम लाल पन्ना लाल, बैन लाल बक्शी, कोरबा के मंगली प्रसाद द्विवेदी, जबलपुर के देवी प्रसाद, बाबई के माखन लाल चतुर्वेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान (इलाहाबाद में जन्मी और खण्डवा में ब्याही), जबलपुर के बाल मुकुंद त्रिपाठी, डॉ. सेठ गोविन्ददास, भोपाल के मास्टर लाल सिंह, मास्टर भैरो प्रसाद, पंडित चतुरनारायण मालवीय, शाजापुर के प्रयाग चंद्र शर्मा, भोपाल के मित्री लाल भण्डारी, गोपीकृष्ण चांडक, मोहम्मद इस्माइल आदि मुख्य हैं। मध्य प्रान्त के साहित्यकारों व लेखकों में पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र का नाम भी उल्लेखनीय है।
8. समकालीन संस्मरण- संस्मरण राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्त्रोत होते हैं। ये उस समय घटित घटनाओं की जीवान्तता को सदैव बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीयों द्वारा अपने संस्मरणों को सहेज कर लिपिबद्ध तो किया ही गया है, साथ ही ब्रिटिश काल के अनेक प्रशासनिक अधिकारियों व सेना के अधिकारियों ने अपने शासनकाल में अपने अनुभवों को सेवानिवृत्ति के पश्चात् लिपिबद्ध किया है। इनसे राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त होती है। ब्रिटिश अधिकारियों में विलियम रसेल के महान् विद्रोह के संस्मरण, कैम्पबेल का "मेरे भारतीय जीवन संस्मरण", लार्ड रार्बट्स का "भारत में इक्तालीस वर्ष" आदि उल्लेखनीय हैं। भारतीय स्वतन्त्रता सेनानियों के संस्मरण, उनकी आत्मकथा, लेख आदि राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के मुख्य स्त्रोत हैं।
9. डायरियाँ- डायरियाँ भी स्वतन्त्रता आन्दोलन के मूल स्त्रोत हैं। ये डायरियाँ दो प्रकार की हैं। एक वे डायरियाँ हैं जो स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों द्वारा लिखी गई हैं जिनमें तत्कालीन समस्याओं का उल्लेख है। कुछ डायरियाँ तो भूमिगत रहते हुए लिखी गई हैं। वे क्या करने वाले हैं? जेल में क्या हुआ? किससे मिलने वाले हैं? अगली मीटिंग कब और कहाँ होगी ? अत्याचार, शोषण आदि के विषय में इन डायरियों से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। दूसरी वे डायरियाँ हैं, जिन्हें प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा लिखा गया है। इन डायरियों से तत्कालीन समय की प्रतिदिन की घटनाओं की जानकारी मिलती है। ऐसी डायरियों में जनरल रील की डायरी "माई डायरी इन इण्डिया" एवं गुप्तचर केदारनाथ नानक चंद की डायरी आदि उल्लेखनीय है।
10. मौखिक परम्पराएँ- किसी प्रश्न को लेकर जनमत कराना, प्रश्नावली तैयार कराना, सम्भाषण तथा वाद-विवाद आदि मौखिक परम्परा की श्रेणी में आते हैं। लोकगीतों के उपाख्यान एवं लोकोक्तियाँ भी मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख स्त्रोत हो सकते हैं। जनमानस में प्रचलित लोक कथाएँ एवं दंत कथाएँ आदि भी स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख स्त्रोत हैं। मध्यप्रदेश स्वतन्त्रता आन्दोलन की बोधगम्यता में अभिलेखीय दस्तावेजों, व्यक्तिगत पत्रों, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं मौखिक परम्पराओं के अतिरिक्त अन्य सार्वजनिक प्रतिवेदनों, सरकारी दस्तावेजों, ऐतिहासिक प्रबन्धों, मानचित्रों आदि स्त्रोतों का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
(बी) द्वितीयक स्रोत
मध्यप्रदेश स्वतन्त्रता आन्दोलन के व्यापक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन के लिए द्वितीयक स्त्रोत महत्वपूर्ण हैं। यद्यपि मूल स्त्रोतों के तथ्यों के आधार पर ही द्वितीयक स्त्रोतों की व्याख्या की जाती है, फिर भी इन स्त्रोतों से तथ्यों की क्रमबद्ध व्याख्या की जा सकती है। यही कारण है कि इतिहास में तथ्यों की पुष्टि करना मूल स्त्रोतों से माना गया है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के द्वितीयक स्त्रोतों को दो भागों में बाँटा गया है-
1. गजेटियर- गजेटियर स्वतन्त्रता आन्दोलन की व्यापक जानकारी के महत्वपूर्ण साधन हैं, क्योकि गजेटियर किसी एक जिले की सम्पूर्ण गतिविधियों और क्रियाकलापों की जानकारी प्रदान करते हैं। गजेटियर में एक जिले की सम्पूर्ण विषयों की प्रमाणिक जानकारी एकत्रित रहती है। इसमें जिले की ऐतिहासिक, भौगोलिक, प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक के साथ-साथ समस्त दर्शनीय व पर्यटन स्थलों एवं मानचित्रों का भी उल्लेख रहता है। इसके अतिरिक्त जिले में प्रकाशित होने वाली पत्र-पत्रिकाओं का भी उल्लेख रहता है। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान लिखे गए गजेटियरों में ब्रिटिश कालीन नीतियों, जनता के साथ उनका व्यवहार, सम-सामयिक घटनाओं आदि का वर्णन होता है। गजेटियरों में स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों की जीवन-गाथा, उनके द्वारा किए गए कार्यों आदि का विस्तृत वर्णन मिलता है। गजेटियरों को स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास लेखन में संदर्भ ग्रंथ के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों के गजेटियर, सम्बन्धित जिले की सामान्य प्रशासन, इतिहास, परिवहन, शिक्षा और स्वास्थ्य तथा अन्य विभाग सम्बन्धी जानकारी उपलब्ध कराते हैं।
2. पुस्तकें- द्वितीयक स्त्रोत का दूसरा महत्वपूर्ण साधन इतिहासकारों द्वारा लिखी गई इतिहास की पुस्तकें हैं। इन पुस्तकों में स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक-एक चरण का वर्णन किया गया है। मध्यप्रदेश में स्वतन्त्रता आन्दोलन का एक लम्बा इतिहास है, जिसका आरम्भ सन् 1818 में भील विद्रोह और सन् 1842 में सागर के बुंदेला विद्रोह से माना जाता है। इसके पश्चात् सन् 1857 में जो देश व्यापी विद्रोह आरम्भ हुआ, उसमें मध्यप्रदेश की जनता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तत्पश्चात् सन् 1885 में राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। मध्यप्रदेश की जनता ने इस राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया और अपना तन, मन, धन न्यौछावर कर दिया। मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें निम्नलिखित हैं-
मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम के सैनिक-इसे मध्यप्रदेश भाषा संचालनालय द्वारा सन् 1984 में प्रकाशित कराया गया है। यह पाँच खण्डों में है। यह मध्यप्रदेश स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बन्धित महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में इन्दौर, जबलपुर, उज्जैन, सागर, भोपाल संभाग के साथ-साथ 34 जिलों के लगभग 6 हजार स्वतन्त्रता सेनानियों के परिचय तथा उन जिलों में स्वतन्त्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन है।
मध्य प्रान्त मरीचिका- यह पुस्तक सन् 1927 में प्रकाशित हुई। इसके लेखक प्रयागदत्त शुक्ल हैं।
होशंगाबाद हुंकार- इस पुस्तक के माध्यम से होशंगाबाद अंचल की प्रमाणिक जानकारी मिलती है। इसके लेखक प्रयागदत्त शुक्ल हैं।
होशंगाबाद का स्वतन्त्रता संग्राम- यह दुर्गा प्रसाद जायसवाल द्वारा लिखित पुस्तक है। इसमें होशंगाबाद के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का वर्णन है।
मध्यप्रान्त और बरार के शिलालेख- यह सन् 1914 में प्रकाशित हुई। इसके रचियता रायबहादुर हीरालाल हैं। इससे सम्बन्धित अंचल की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है।
ट्राइब्स एण्ड कास्टस ऑफ दि सेंट्रल प्राविन्सेज- यह रायबहादुर द्वारा लिखित पुस्तक है। इसमें मध्यप्रांत और बरार के विभिन्न समुदायों और जातियों व उपजातियों का वर्णन है। यह चार खण्डों में है, इनका प्रकाशन सन् 1916 में हुआ।
डॉ. हीरालाल-एक संकलन - भारतीय राष्ट्रीय न्यास जबलपुर द्वारा सन् 1988 में प्रकाशित हुआ है। इस संकलन में जबलपुर, सागर, दमोह, मण्डला, सिवनी, नरसिंहपुर आदि जिलों से सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध है।
भोपाल पास्ट एण्ड प्रजेन्ट- यह असफाक अली सैयद द्वारा लिखित ग्रंथ है। इण्डिया फ्रांस-कर्जन टू नेहरू एण्ड आफ्टर- यह सन् 1969 में दुर्गा दास द्वारा लिखित है।
मालवा के युगान्तर नवाब- जहाँ बेगम- यह सन् 1876 में रघुवीर द्वारा लिखा गया। नवाब शाहजहाँ बेगम - हयात शाहजहानी द्वारा सन् 1876 में लिखित ग्रंथ है। मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी-ताजुल इकबाल द्वारा रचित ग्रंथ है।
स्वाधीनता संग्राम सेनानी- सन् 1968 में ठाकुर भूपति सिंह द्वारा लिखा गया। उपर्युक्त पुस्तकों के अतिरिक्त ऐसे अनेक ग्रन्थ हैं, जिन्हें मध्यप्रदेश स्वतन्त्रता आन्दोलन के स्त्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है। वर्तमान में अनेक विद्वजन इस पुनीत कार्य को आगे बढ़ाने के लिए तथ्यों के संकलन मे जुटे हैं।
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