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मध्यप्रदेश में महात्मा गाँधी के आगमन 1918 में दक्षिण अफ्रीका से आगमन के तीन वर्ष पश्चात् ।

 मध्यप्रदेश में महात्मा गाँधी के आगमन  महात्मा गाँधी विश्व इतिहास का एक ऐसा अपूर्व और अद्भुत व्यक्तित्व हैं जिसने चिंतन और आचरण दोनों स्तरों पर परम्पराओं और सीमाओं पर अतिक्रमण किया। गाँधी एक ऐसे योद्धा हैं, जो सदा लीक छोड़कर चले। आजादी की लड़ाई के अपने पूर्ववर्ती समस्त रणबाकुरों से भिन्न हैं। उसने सत्य और अहिंसा से विश्व की सबसे अधिक ताकतवर हुकुमत के विरूद्ध जंग ही नहीं छेड़ी बल्कि एक गौरवशाली अतीत के पद्दलित, शोषित और विपन्न देश के समक्ष एक नया अध्याय भी जोड़ा। उनके आजादी के इस जंग में देश के युवा वर्ग भी उन्हीं के पद चिन्हों में चल पड़ने को आतुर हो उठे।

गाँधी जी ने लगभग ढाई दशक के अन्तराल में दस बार मध्यप्रदेश की यात्राएँ की। उनकी पहली यात्रा सन् 1918 में दक्षिण अफ्रीका से आगमन के तीन वर्ष पश्चात् इन्दौर में आयोजित आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में हुई। तब से उनके दौरे मध्यप्रदेश में सतत् होते रहे। इनकी मध्यप्रदेश की यात्राओं का विवरण इस प्रकार है-

1. 1918 - इन्दौर

2..1920 - रायपुर, धमतरी

3. 1921 - छिंदवाड़ा

4. 1921 - सिवनी, जबलपुर

5. 1929 खण्डवा

6. 1929 - भोपाल

7. 1933 - दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर, धमतरी, बालाघाट, बैतूल, इटारसी, सागर, दमोह, कटनी, मण्डला, हरदा, खण्डवा

8. 1935 -इन्दौर

9. 1941 - भेड़ाघाट

10. 1942- जबलपुर


गाँधी जी के इन दौरों से मध्यप्रदेश में एक नयी तरह की स्फूर्ति का जन्म हुआ। किन्तु इन दस यात्राओं में सातवीं यात्रा क़ा विशेष महत्व है। यह दौरा हरिजन दौरे के नाम से जाना जाता है। हरिजनों की व्यथा-कथा ने गाँधी जी की संवेदना को झकझोर दिया था। वे अनेक गाँवों में गये। सागर के निकट अनंतपुर ग्राम को यह सौभाग्य प्राप्त है कि बापू ने वहाँ रात बितायी, पुआल के बिस्तर पर सोये, झोपड़ियों में गये, चरखा काता। इस यात्रा में अनेक स्थानों पर मंदिरों के पट हरिजनों के लिऐ खोले गये। बरमान घाट (नरसिंहपुर) पर गाँधी ने केवटों के चरण पखारे, बिलासपुर में हरिजन वृद्धा के शवरी हठ ने गाँधी को झुका दिया, मण्डला में सतनामियों ने गाँधी से शास्त्रार्थ किया। सिवनी में गाँधी ने कहा- "आज हिन्दू और हिन्दू धर्म दोनों ही कसौटी पर हैं। यदि वे सच्चे न उतरे तो दोनों ही नष्ट हो जायेगें। यह मैं बहुत ही नम्रतापूर्वक कहता हूँ कि संसार में किसी जगह धर्म के नाम पर और जन्म से ही अस्पृश्यता नहीं मानी जाती है। बुद्धि हृदय कोई भी इसका समर्थन नहीं कर सकते। शास्त्रों में इसका समर्थन नहीं मिलता। विद्वानों ने इस बात की ताईद दी है। मैं जबरदस्ती हरिजनों को मंदिरों में नहीं घुसेड़ना चाहता। मैं तो चाहता हूँ कि वे स्वच्छता को अपनाये तथा माँस, मदिरा का त्याग करके स्वयं ही मंदिर में प्रवेश के लिए जनता का समर्थन प्राप्त करें। धर्म में बरजोरी का कोई काम नहीं। मैं तो करोड़ों के हृदयों में परिवर्तन करना चाहता हूँ। हरिजन सेवक संघ का विशेष कार्य है पर वह उतना हो सफल होगा जितनी कार्यकर्ताओं में पवित्रता होगी। धर्म जागृति केवल तपस्या और पवित्रता से ही उत्पन्न हो सकती है। यदि हम अपने हृदय को पवित्र नहीं करेंगे तो जनता के हृदय को कैसे बदल सकते हैं।"


गाँधी के आगमन से मध्यप्रदेश में आजादी का उ‌द्घोष गूंज उठा। जनता का गाँधी से साक्षात्कार अपने आप से साक्षात्कार था। जनता ने अपनी ताकत और आत्मबल को पहचाना। फलतः उनकी समवेत शक्ति ने ब्रिटिश प्रशासन की नींव हिला दी।


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