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स्वतन्त्रता के बाद भारतीय राज्यों के एकीकरण अथवा स्वाधीन भारत में देशी रियासतों के विलीनीकरण । (Integration of Princely States in Independent India)

 स्वतन्त्रता के बाद भारतीय राज्यों के एकीकरण  1947 के पश्चात् हैदराबाद, जूनागढ़ व काश्मीर रियासतों की क्या स्थिति  भारत में देशी रियासतों का विलय (Integration of Princely States in Independent India)


ब्रिटिश भारत में देशी रियासतों पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोच्चता स्थापित थी यद्यपि सैद्धान्तिक दृष्टि से आन्तरिक रूप से ये रिसायतें स्वतन्त्र थीं किन्तु व्यवहार में इन पर ब्रिटिश शासन का नियन्त्रण था। 1946 ई. की कैबिनेट मिशन योजना के द्वारा 'सर्वोच्चता' को समाप्त करने का निर्णय किया गया किन्तु यह भी स्पष्ट किया गया कि यह अधिकार भारतीय सरकार को नहीं दिया जायेगा। इस घोषणा का दुष्परिणाम यह हुआ कि देशी रियासतें स्वतन्त्र होने का स्वप्न देखने लगी।


विलीनीकरण की प्रक्रिया (Process of Integration) - भारत में कुल 562 रियासतें थी। इनमें हैदराबाद, ग्वालियर, काश्मीर, बड़ौदा एवं मैसूर जैसी 100 बड़ी रियासतें थी तथा कुछ रियासतें बहुत ही छोटी थी। इन सभी रियासतों में निरंकुश राजतन्त्र था तथा राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास किया जाता था। इन रियासतों का विलय कोई सरल कार्य नहीं था किन्तु सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस कार्य को करने में असाधारण योग्यता का परिचय दिया तथा रियासतों से अपील की कि वे भारत की अखण्डता को बनाये रखने में सहयोग दें। एक ओर तो उन्होंने छोटी-छोटी रियासतों को मिलाकर एक बड़ा राज्य बनाया। दूसरी ओर इन राज्यों में प्रजातान्त्रिक प्रणाली को लागू किया। उदाहरणार्थ 1947 ई. में उड़ीसा व छत्तीसगढ़ के 39 राज्यों का उड़ीसा व मध्यप्रदेश में विलय कर दिया गया। भारतीय रियासतों में सबसे बड़ा संघ 'वृहत्तर राजस्थान संघ' था जिसका निर्माण 30 मार्च 1949 ई. को हुआ। यह भारत की वृहत्तम राजनीतिक एवं प्रशासनिक इकाइयों में से एक था जिनमें 15 प्राचीन राजपूत रियासतें थीं। बड़ौदा की बड़ी रियासतें 1 मई 1949 ई. को बम्बई प्रान्त में मिल गयी। भोपाल, कूचबिहार, त्रिपुरा व मणिपुर केन्द्रीय प्रशासन के नियन्त्रण में आ गये। नवम्बर 1949 ई. तक जूनागढ़, हैदराबाद व काश्मीर को छोड़कर सभी भारतीय रियासतों का विलय पूर्ण हो चुका था। सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रशंसा करते हुए लॉर्ड माउण्टबेटन ने भी कहा था, "रियासत मन्त्रालय के अध्यक्ष और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयत्नों से एक ऐसी योजना बनाई गई जो मुझे रियायतों तथा भारतीय डोमिनियन के लिये एक सी लाभदायक प्रतीत हुई।"


जूनागढ़, हैदराबाद एवं काश्मीर की रियासतों के विलीनीकरण हेतु सेना की सहायता लेनी पड़ी।


जूनागढ़-जूनागढ़ काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत थी जिसकी बहुसंख्यक प्रजा हिन्दू तथा शासक मुसलमान था। शासक ने पाकिस्तान में प्रवेश पत्र पर हस्ताक्षर किये जिसके कारण जनता ने विद्रोह कर दिया। स्थिति इतनी विकट हो गई कि शासक के जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया। विवश होकर 9 नवम्बर 1947 को राज्य के मुस्लिम दीवान ने भारत सरकार से प्रार्थना की कि वह राज्य में कानून-व्यवस्था स्थापित करने में मदद करें। फरवरी 1948 ई. में जनमत कराया गया जो पूर्णतया भारत में प्रवेश के पक्ष में था। अन्ततः 20 जनवरी 1949 ई. को जूनागढ़ के प्रदेश को काठियावाड़ के संयुक्त राज्य में विलीन कर दिया गया।


हैदराबाद-हैदराबाद सबसे बड़ा राज्य था जिसका क्षेत्रफल 82,313 वर्ग मील तथा जनसंख्या 1.86 करोड़ थी। यहाँ की बहुसंख्यक प्रजा हिन्दू किन्तु शासक मुस्लिम था। यह रियासत भारतीय संघ के मध्य में स्थित थीं। भारत सरकार ने हैदराबाद के निजाम से भारत डोमिनियन में सम्मिलित होने के लिये कहा किन्तु कासिम रिजवी जैसे रजाकारों के प्रभाव के कारण निजाम ने इस पेशकश को अस्वीकार कर दिया। भारत सरकार के निजाम को सहमत कराने के सभी प्रयत्न असफल रहे। पाकिस्तान की सहायता से निजाम ने भारत सरकार से लड़ने के लिये एक सेना तैयार कर ली। परिणामस्वरूप भारत सरकार ने भी रियासत के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय किया। 13 सितम्बर 1948 को हैदराबाद के विरुद्ध पुलिस कार्यवाही शुरू हुई तथा तीन दिन के पश्चात् निजाम को पराजित कर रियासत में अल्पकाल के लिए सैनिक प्रशासन लागू कर दिया गया। अन्त में 1 नवम्बर 1948 को हैदराबाद भारतीय संघ में सम्मिलित हो गया। वहाँ लोकतंत्रीय शासन की स्थापना की गई तथा निजाम को वैधानिक अध्यक्ष बनाया गया।


काश्मीर-काश्मीर रियासत का कुल क्षेत्रफल 84,471 वर्ग मील तथा जनसंख्या 44 लाख थी। यहाँ की बहुसंख्यक प्रजा मुस्लिम तथा शासक हिन्दू था। 15 अगस्त 1947 ई. तक यहाँ का शासक किसी भी डोमिनियन में सम्मिलित नहीं हुआ। लॉर्ड माउण्टबेटन ने शासन को सलाह दी कि वह जनता की इच्छानुसार ही किसी भी डोमिनियन में सम्मिलित होने का निर्णय ले। काश्मीर का शासक असमंजस की स्थिति में था क्योंकि वह भारत व पाकिस्तान दोनों के साथ यथापूर्व समझौते करना चाहता था।


15 अगस्त 1947 ई. के शीघ्र पश्चात् पाकिस्तान की सहायता से कबायली लोगों ने रियासत पर सीमान्त हमले करने आरम्भ कर दिये। कबायली लोग श्रीनगर पर कब्जा करने ही वाले थे तभी काश्मीर के शासक ने भारत सरकार से सहायता माँगी। भारतीय सेना की सहायता से आक्रान्ता को खदेड़ दिया गया। भारत के गवर्नर जनरल ने स्पष्ट किया कि, "भारत सरकार की यह नीति है कि जिस रियासत में प्रवेश के सवाल पर विवाद रहा हो, उसमें प्रवेश के प्रश्न का निर्णय रियासत की जनता की इच्छाओं के अनुसार ही हो और उसके अनुसार मेरी सरकार की यह इच्छा है कि काश्मीर में कानून व व्यवस्था स्थापित होने पर और उसकी भूमि से आक्रान्ता के हट जाने पर प्रवेश के प्रश्न पर निर्णय जनता से पूछकर किया जायेगा।" 31 दिसम्बर 1947 ई. को भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ से अपील की कि वह पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी लुटेरों को भारत पर आक्रमण करने से रोके। 1 जनवरी 1949 ई. में भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध विराम सन्धि हुई। काश्मीर का कुछ भाग पाकिस्तान के अधिकार में ही रह गया। संयुक्त राष्ट्र संघ इस विषय में कुछ भी कर पाने में असमर्थ रहा।

पाकिस्तान की हठधर्मी के कारण काश्मीर की समस्या को हल करने के सभी प्रयास विफल रहे। 'जम्मू-काश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस' और काश्मीर की संविधान सभा ने भारत में प्रवेश का समर्थन कर दिया। वर्तमान में काश्मीर में निर्वाचित लोकतन्त्रीय सरकार है किन्तु आज भी काश्मीर के कुछ भाग पर पाकिस्तान का अधिकार बना हुआ है।


रियासतों के विलीनीकरण पर एक नजर

(1) सर्वप्रथम उड़ीसा व छत्तीसगढ़ की 39 रियासतों का विलीनीकरण किया गया। 1 जनवरी 1948 ई. को ये रियासतें उड़ासी व मध्य प्रान्त का हिस्सा बन गई।


(2) अगला विलय 17 दक्षिणी राज्यों का किया गया। मार्च 1948 ई. में इन रियासतों को बम्बई में विलीन कर दिया गया। बाद में इसमें कोल्हापुर को भी विलीन कर दिया गया। 

(3) जून 1948 ई. में गुजरात की 289 रियासतें बम्बई प्रान्त में विलीन की गई। मई1949 ई. में बड़ौदा को बम्बई प्रान्त में विलीन कर दिया गया।

(4) सन् 1948 से 1949 ई. में छोटी-छोटी रियासतों का पंजाब में तथा बंगनपल्ली, पुड्डोकोट्टाई और सेण्डूर का मद्रास में विलय कर दिया गया। इसी दौरान कूचविहार का पश्चिमी बंगाल में, खासी हिल का आसाम में तथा टिहरी गढ़वाल, रामपुर तथा बनारस का उ.प्र. में विलीनीकरण कर दिया गया।

 (5) कतिपय रियासतों को मिलाकर केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। पूर्वी पंजाब की 21 रियासतों को मिलाकर 15 अप्रैल 1948 ई. को हिमाचल प्रदेश बनाया गया। बुन्देलखण्ड व बघेलखण्ड की 35 रियासतों को मिलाकर विन्ध्य प्रदेश बनाया गया। 12 अक्टूबर 1948 को बिलासपुर को पंजाब रियासत में विलीन कर दिया गया।

(6) कुछ रियासती संघ भी बनाये गये। 15 फरवरी 1948 को 222 रियासतों को मिलाकर सौराष्ट्र संघ बनाया गया। इस संघ में सम्मिलित रियासतों में साझी कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका बनाने का निश्चय किया गया। राजाओं की परिषद् राजमण्डल कहलाती थी। संघ का प्रधान राजप्रमुख कहलाता था। राजप्रमुख में समस्त कार्यपालिका शक्ति निहित की गई।

 (7) 18 मार्च 1948 ई. को अलवर, भरतपुर आदि को मिलाकर मत्स्य संघ का निर्माण किया गया।


(8) 20 अगस्त 1948 ई. को पटियाला और पूर्वी पंजाब रियासत संघ (पेप्सू) जिसमें सात बड़ी रियासतें सम्मिलित थी, अस्तित्व में आया।

 (9) राजस्थान संघ 1948 ई. से 1949 ई. के मध्य तीन चरणों में बना। (10) 1 जुलाई 1949 ई. को ट्रावनकोर-कोचीन संघ अस्तित्व में आया


रियासतों की प्रशासनिक व्यवस्था-एकीकरण से पूर्व रियासतों में निरंकुश सरकारें स्थापित थी तथा प्रशासन में जनता की कोई भागीदारी नहीं थी। किन्तु स्वाधीन भारत में रियासतों के एकीकरण के पश्चात् स्थिति में परिवर्तन आया। विलय समझौतों के अनुसार रियासतों के राजाओं ने शासन की समस्त शक्तियाँ डोमिनियन सरकार को सौंप दी। विलीन रियासतों की जनता को प्रान्तीय विधानमण्डलों ने प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। रियासती संघों में साझी व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की व्यवस्था की गई। राजाओं की परिषद 'राजमण्डल' कहलाई। संघ का प्रधान राजप्रमुख कहलाया जिसमें समस्त कार्यपालिका शक्ति केन्द्रित की गई। उसे परामर्श देने के लिये मन्त्रि-परिषद बनाई गई। भारत सरकार को रियासतों की जनता से पूर्ण सहानुभूति थी। रियासतों का प्रान्तों में विलीनीकरण करके रियासतों  जनता को प्रान्तों की जनता के समान ही अधिकार प्रदान किये गये। रियासती संघों में उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई। केन्द्रशासित प्रदेशों की जनता को प्रशासनिक अधिकारों से वंचित रखा गया।


आगामी वर्षों में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग की गई। गृह- मन्त्रालय के एक प्रस्ताव के आधार पर 'राज्य पुनर्गठन आयोग' की नियुक्ति की गई जिसके अध्यक्ष श्री फजलअली थे। आयोग के अन्य सदस्य पं. हृदयनारायण कुँजरू तथा श्री के. एम. पणिक्कर थे। पुनर्गठन पर विचार करते समय आर्थिक, वित्तीय, प्रशासनिक एवं एकता व अखण्डता से सम्बन्धित पहलुओं को दृष्टिगत रखा गया। आयोग ने 30 सितम्बर 1953 ई. में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसके अनुसार भारत संघ में वर्तमान 27 तथा तीन केन्द्र शासित प्रदेशों के स्थान पर 16 राज्य होंगे। कुछ सम्पूर्ण राज्य तथा कुछ राज्यों के अंश अन्य राज्यों में मिला दिये गये। सोलह नये राज्य इस प्रकार थे-असम, आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, केरल, कर्नाटक, उत्तर-प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बम्बई, विदर्भ, हैदराबाद, पंजाब, पश्चिमी बंगाल, मद्रास एवं जम्मू-काश्मीर। दिल्ली, मणिपुर व अण्डमान-निकोबार को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया। सन् 1960 ई. में भाषायी आधार पर बम्बई के स्थान पर गुजरात व महाराष्ट्र के राज्य अस्तित्व में आये। सन् 1962 में नागालैण्ड का नवीन राज्य स्थापित किया गया। सन् 1966 में गोआ, दमन व दीव को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसी वर्ष 'पंजाब पुनर्गठन अधिनियम' के तहत पंजाब के स्थान पर पंजाब व हरियाणा के नवीन राज्य बने। चण्डीगढ़ को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया। 1971 ई.  में हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया। इसी वर्ष मणिपुर, मेघालय व त्रिपुरा को राज्य का दर्जा दिया गया।


स्वतन्त्रोत्तर भारत में शनैः शनैः भारतीय रियासतों के शासकों के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया। राष्ट्रपति के आदेशानुसार प्रिवी पर्स को प्रतिबन्धित करने की अपील को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ठुकरा दिया गया किन्तु अन्त में 1971 ई. में रियासती शासकों के विशेषाधिकार और प्रिवी पर्स समाप्त कर दिये गये


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