बाई.एन. पेट्रिक (Y. N. Petrik) के अनुसार, "प्रादेशिक नियोजन प्रदेश के प्राकृतिक संसाधन के उपयोग, प्राकृतिक पर्यावरणीय रूपान्तरण, उत्पादन शक्तियों तथा उसके विवेकपूर्ण संगठन पर आधारित है।" एल्डन व मॉरगन (1974) ने अपने लेख में इस बात पर जोर दिया है कि "प्रादेशिक नियोजन को न तो केवल आर्थिक नियोजन और न ही केवल भौतिक नियोजन के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।" अपितु यह एक ऐसा नियोजन है जिसकी रुचि का केन्द्र भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक तत्वों को किसी प्रदेश विशेष के सन्दर्भ में समन्वित रूप की सोच पर केन्द्रित होती है।" इस तरह की संकल्पना में किसी प्रदेश विशेष की कोई विशेष अनुभव पूर्व समस्याएँ नहीं होतीं जिनके निदान के लिए परियोजना निर्मित होती है। इस तरह की संकल्पना में बहुस्तरीय प्रदानुक्रमण की कल्पना की जाती है। अतः नियोजन प्रक्रिया में प्रदेश (Space) का घटक भी चिन्हित होता है।
किसी प्रदेश के विकास हेतु अपने विभिन्न रूपों में एक प्रकार की दिशा निर्देशिका है कि प्राकृतवास, आर्थिकी एवं सामाजिकता के समाकलित विकास का पर्यवेक्षण है। फ्रीडमैन (1972) के शब्दों में, "यह एक क्षेत्र विशेष के सामाजिक लक्ष्यों को सूत्र रूप में वर्णित करने की एक प्रक्रिया है। जबकि हिलहर्स्ट (1971) का कहना है कि यह एक निर्णयात्मक प्रक्रिया है जिससे एक क्षेत्र विशेष में उपलब्ध संसाधनों की सहायता से अधिक से अधिक लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके। सुन्दरम् एवं प्रकाशराव (1971) के अनुसार, प्रादेशिक नियोजन एक विधि, दर्शन एवं संयोजना है जो किसी क्षेत्र, क्षेत्रस्तर एवं आर्थिक विषमताओं के निवारण तथा समाकलित विकास का एक ढाँचा प्रस्तुत करती हैं। एल. आर. सिंह (1986) का विचार है कि क्षेत्रीय नियोजन आवश्यक रूप से एक स्थानिक विश्लेषण है जो कि प्रस्तावित राष्ट्रीय नीति ढाँचे के तहत् आन्तरिक एवं बाह्य उपलब्धियों को प्राप्ति हेतु धरातलीय विभिन्नताओं के आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय तत्वों के मध्य न्यायिक एकता बढ़ाने का प्रयास करता है, जबकि आर. पी. सिंह (1982) का मत है कि प्रादेशिक विकास नियोजन, प्राकृतिक, मानवीय तथा अन्य संसाधनों का पूर्णरूपेण उपयोग करने का प्रयास करता है और इस तरह से यह क्षेत्रों तथा क्षेत्रीय समूहों के विकास के परिणाम को वितरित करता है। जिससे सामाजिक-आर्थिक विषमताओं के अन्तर को कम करके जनसमूह के जीवन स्तर में वृद्धि की जा सकती है।
प्रादेशिक नियोजन का दृष्टिकोण भी नीरज जेटली (1999) द्वारा संकल्पित उपक्रम संसाधन नियोजन की शांति बाह्य विस्तारित दृष्टिकोण होना आवश्यक है इसका मतलब यह है कि प्रादेशिक नियोजन में किसी प्रदेश विशेष का नियोजन करते समय उस प्रदेश को एक एकीकृत प्रादेशिक तन्त्र का अभिन्न अंग माना जाता है।
प्रादेशिक नियोजन की परिभाषाएँ (Definitions of Regional Planning)
प्रादेशिक नियोजन को कुछ विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है-
(1) लेविस मम्फोर्ड (Lewis Mumford) के अनुसार, "प्रादेशिक नियोजन उन समस्त क्रियाकलापों का चेतन निर्देशन तथा सामूहिक समाकलन है जो पृथ्वी के स्थान, संसाधन तथा संरचना के रूप में उपयोग पर आधारित है।" या दूसरे शब्दों में, "प्रदेश का व्यवस्थित विकास तथा इसका अन्य देशों से अधिक सूक्ष्म सम्बन्ध करना प्रादेशिक नियोजन का कार्य है।" ("The orderly development of the region and finer articulation with other region is the task of regional planning.")
(2) जॉन फ्रीडमैन (John Friedmann) के अनुसार, "प्रादेशिक नियोजन अधिनगरीय स्थान या एक नगर की अपेक्षा अधिक बड़े क्षेत्र में मानवीय क्रिया-कलापों के व्यवस्थापन से सम्बन्धित है या प्रादेशिक नियोजन अधिनगरीय स्थान के अन्तर्गत मानवीय क्रियाकलापों के व्यवस्थापन में सामाजिक उद्देश्यों के सूत्रीकरण की प्रक्रिया है।" ("Regional planning is concerned with the ordering of human activities in supra urban space that is in any area which is larger than a single city Regional planning is the process of formulating and clearifying social objectives in the ordering of activities in supra-uran-space.")
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(3) पी. सेन गुप्ता (P. Sen Gupta) के अनुसार, "प्रदेश के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों के पूर्णरूप से विकास के लिए प्रादेशिक नियोजन एक सुनियोजित प्रयास है।" ("Regional planning is a planned effort for bringing the fullest development of natural and man power resources of the country without causing any extravagant waste ")
(4) डॉ. राधाकमल मुखर्जी (Dr. Radha Kamal Mukherjee) के अनुसार, "प्रादेशिक नियोजन का उद्देश्य विभिन्न परिस्थितिकीय क्षेत्रों में संस्कृति और प्रदेश के भावी पारम्परिक व्यवस्थापन के लिए पूर्वानुमान करना और व्यवस्थापना करना है।" ("The aim of regional planning is to anticipate and provide for future reciprocal adjustment of culture and region is different ecological areas.")
(5) पैर्टिक एक्ट के अनुसार, "प्रादेशिक नियोजन का उद्देश्य प्रदेश का सही एवं उचित विकास है। यह जनसंख्या उद्योग एवं भूमि की एक इकाई के रूप में देखता है।"
प्रादेशिक नियोजन का उद्भव एवं विकास(Origion and evolution of regional planning)
प्रादेशिक नियोजन की विचारधारा आधुनिक समय की नहीं वरन् प्राचीन युग की देन है, किन्तु आज के युग में यह अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय बन गया है। प्रादेशिक नियोजन, प्रादेशिक भिन्नताओं के आधार पर किसी प्रदेश विशेष की मूलभूत एवं विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक विकासीय योजना का ढाँचा (Framework) प्रस्तुत करता है। बेन्टन मैकॉय ने सन् 1928 में प्रादेशिक नियोजन विषय की विचारधारा अपनी पुस्तक 'नया अन्वेषण-प्रादेशिक नियोजन का दर्शनशास्त्र' के लेखन में प्रस्तुत की। समसामयिक नियोजन का कार्य- क्षेत्र 20वीं शताब्दी के दूसरे दशक की नियोजन विचारधारा से परिवर्तित हो गया इसी कारण नियोजन के कार्य-क्षेत्र एवं कर्म भूमि दोनों में ही परिवर्तन हुआ। इन परिवर्तन के बाद भी मैकॉय, गेडीस, स्टीन आदि विद्वानों के प्रति जिन्होंने प्रादेशिक नियोजन की मौलिक संकल्पना की नींव रखी, जो वर्तमान में भी अत्यधिक उपयोगी व अभिप्रेरित करती है। आज के प्रादेशिक नियोजन की विषय-वस्तु 20वीं सदी के दूसरे दशक में ब्रिटेन व संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रचलित भूमि उपयोग उपगमन पर आधारित प्रादेशिक नियोजन का विस्तृत रूप है।
हॉषमिन्ट (1969) ने संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रादेशिक नियोजन के विकास को पाँच अवस्थाओं में प्रस्तुत किया है।
(1) प्राकृतिक संसाधन अनुस्थापन
(2) सांस्कृतिक प्रादेशिकता अनुस्थापन
(3) प्रादेशिक विज्ञान उपगमन
(4) प्रादेशिक आर्थिक विकास विचारधारा का स्कूल
(5) नगर-महानगरीय उपगमन। संयुक्त राज्य अमेरिका में 20वीं सदी के चौथे व पाँचवें दशक में टेनेसी घाटी
प्राधिकरण की स्थापना के साथ प्रादेशिक नियोजन प्रारम्भ हुआ। यह प्राकृतिक संसाधनों के सुनियोजित उपयोग हेतु परियोजना का शुभारम्भ था। इसके बाद नीदरलैण्ड (पोल्डर निर्माण), इजराइल जैजरील घाटी) तथा भारत (दामोदर घाटी) आदि इसी प्रकार की परियोजनाएँ थीं। अतः 'टेनेसी घाटी परियोजना' को 'प्रादेशिक नियोजन' का पर्यायवाची माना जाता है। ओडेम व वेन्स को अमेरिका में समाजशास्त्रीय विचारधारा वाले दाक्षिणी स्कूल के प्रतिनिधि के रूप में माना, सांस्कृतिक प्रादेशिकता के प्रमुख प्रतिपादक के रूप में इन दोनों विद्वानों को माना गया। वाल्टर इजार्ड को प्रादेशिक विज्ञान विचारधारा का विद्वान माना गया। इनके अनुसार, प्रदेश एक गतिमान जैवी-तन्त्र है। प्रादेशिक आर्थिक विकास विचारधारा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सामने आयी जो प्रभावशाली विचारधारा रही है। जौन फ्रीडमैन ने सर्वप्रथा प्रादेशिक समस्याओं एवं मुद्दों की नगर नगरीय प्रकृति की ओर ध्यान आकर्षित किया।
पिछले कुछ वर्षों में प्रादेशिक नियोजन द्वारा प्रादेशिक विकास की रणनीति को बल मिला। इसके अन्तर्गत समाज को प्रादेशिक स्पेस (Regional Space) का एक समन्वित अंग माना गया। वर्तमान युग में निवास्पता की गुणवत्ता (Quality of Habitability) तथा समुदायिक भावना (Community Building) विकास, प्रादेशिक नियोजन के प्रमुखद्विगामी उद्देश्य माने जाने लगे। कुछ वर्ष पूर्व चांदविक नामक विद्वान ने अपनी Systems view of Planning नामक पुस्तक में प्रादेशिक नियोजन को एक भू-तकनीक (Geotechnology) की संज्ञा दी है। इसका मतलब यह है कि हम प्रादेशिक नियोजन के लिए किसी भी क्षेत्रीय प्रदेश को एक प्रादेशिक तन्त्र (System of Region) का अभिन्न अंग माने जिससे विभिन्न प्रदेशों के पुनर्गठन को व उसमें जीव के अनुजीवन तथा उसकी सतत् उपस्थिति को सुनिश्चित किया जा सके। इस विचारधारा द्वारा प्रत्येक प्रदेश का भविष्यगामी विकास के लिए क्षमताओं, प्रत्याशी अपेक्षाओं व समस्याओं का वास्तविक आंकलन बहुत जरूरी होता है।
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