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साइमन कमीशन के बहिष्कार के कारण Simon Commission

 साइमन कमीशन के बहिष्कार के कारण Simon Commission


साइमन आयोग के गठन की उद्घोषणा ने भारत के लोगों में व्यापक असंतोष का संचार किया। अतः भारत के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने एकमत होकर निम्नलिखित आधारों पर उसका बहिष्कार किया-

कमीशन के सभी सात सदस्य श्वेत थे, इसमें किसी भी भारतीय को प्रतिनिधित्व नहीं मिला।

भारतीय नेताओं का यह मानना था कि स्वराज संबंधी योग्यता के लिये किसी परीक्षा में शामिल होने की जरूरत नहीं है। यह तो भारतीयों का जन्मसिद्ध अधिकार है।

भारतीयों ने स्वशासन के लिये योग्यता-अयोग्यता का निर्धारण विदेशियों द्वारा करने पर ऐतराज जताया। इसके अतिरिक्त उन्होंने सरकार के इस काम को आत्म-निर्णय के सिद्धांत का उल्लंघन भी समझा।


3 फरवरी, 1928 ई. को साइमन कमीशन के बंबई तट पर उतरने के साथ ही राजनीतिक दलों ने इसका विरोध प्रारंभ कर दिया। इस दिन देशव्यापी हड़ताल आयोजित की गई। बहिष्कार कार्यक्रम की व्यापकता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन को शीघ्र ही दिल्ली भेज दिया, लेकिन वहाँ भी उसका स्वागत काले झंडों तथा 'साइमन वापस जाओ' के नारों से किया गया। केंद्रीय विधायिका ने भी उसका स्वागत करने से मना कर दिया। फिर जहाँ-जहाँ साइमन कमीशन गया, वहाँ-वहाँ उसका विरोध किया गया, अतः सरकार ने जनता के विरोध-प्रदर्शन के प्रति शत्रुतापूर्ण रुख अपनाते हुए निर्मम दमन तथा पुलिस कार्यवाहियों का सहारा लिया। साइमन कमीशन के लाहौर पहुँचने पर वहाँ के छात्रों ने लाला लाजपत राय के नेतृत्व में विशाल जुलूस निकालकर विरोध-प्रदर्शन किया, जिस पर पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस लाठी चार्ज में लाला लाजपतराय गंभीर रूप से घायल हो गए एवं दो सप्ताह बाद उनकी मृत्यु हो गई। साइमन कमीशन के लखनऊ पहुँचने पर जवाहरलाल नेहरू एवं गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व में विरोध-प्रदर्शन का आयोजन हुआ। लगभग सभी भारतीय पार्टियों ने इस बहिष्कार आंदोलन में हिस्सा लिया। हिंदू महासभा, लिबरल फेडरेशन तथा भारतीय औद्योगिक एवं वाणिज्यिक कॉन्ग्रेस भी आयोग के बहिष्कार कार्यक्रम में शामिल थी, लेकिन इस समय मुस्लिम लीग दो गुटों में बँटी हुई थी- मोहम्मद अली जिन्ना के अधीन उदारवादी गुट तथा मोहम्मद शफी खान के अधीन अनुदारवादी गुट। जिन्ना के गुट ने बहिष्कार आंदोलन में कॉन्ग्रेस का साथ दिया था, जबकि मोहम्मद शफी खान के अनुदारवादी गुट, पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी, दक्षिण भारत में जस्टिस पार्टी, केंद्रीय सिख संगठन तथा अखिल भारतीय अछूत फेडरेशन ने कमीशन का स्वागत किया था।


ध्यातव्य है कि इस समय लोगों ने ब्रिटिश सरकार के क्रूरतापूर्ण दमन के बावजूद नए-नए तरीके खोजकर विरोध-प्रदर्शन जारी रखा, जैसे- पूना के नौजवानों ने लोनावाला से पूना तक एक ट्रक में सवार होकर ट्रेन में सवार साइमन कमीशन का विरोध किया, वहीं लखनऊ में खलिकुज्जमा के नेतृत्व में पतंगों और गुब्बारों में 'साइमन वापस जाओ' लिखकर विरोध जताया गया।


साइमन कमीशन की रिपोर्ट

साइमन कमीशन ने 1928 ई. तथा 1929 ई. में भारत का दो बार दौरा करने के बाद अपनी रिपोर्ट 1 मई, 1930 ई. को प्रकाशित की, जिसमें उसने निम्नलिखित अनुशंसाएँ -

माना कि भारत सरकार अधिनियम, 1919 द्वारा स्थापित द्वैध शासन व्यवस्था सफल नहीं रही है, अतः इसे समाप्त कर प्रांतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाए।

केंद्र में भारतीयों को कोई उत्तरदायित्व न प्रदान किया जाए, लेकिन भारत की विविधता को देखते हुए केंद्र में संघीय व्यवस्था की स्थापना की जाए।

पृथक् निर्वाचन व्यवस्था को जारी रखा जाए तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये गवर्नर जनरल और गवर्नरों को विशेष अधिकार दिया जाए।

विधानमंडलों का पुनर्गठन कर सदस्य संख्या का विस्तार किया जाए।

इसके अतिरिक्त मताधिकार का विस्तार करने, सेना का भारतीयकरण करने तथा भारत के संबंध में गृह सरकार की शक्तियों को कम करने की बात कही।

बर्मा को भारत से एवं सिंध को बंबई प्रांत से अलग करने को कहा, लेकिन इसने उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत को भी पूरी तरह प्रांत बनाने से मना कर दिया। प्रत्येक दस वर्ष बाद पुनरीक्षण के लिये एक संविधान आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था को समाप्त करने की सिफारिश की थी।

भारतीयों ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि इसमें उनकी मुख्य मांग 'स्वराज' या 'डोमिनियन स्टेटस' देने का उल्लेख तक नहीं किया गया था।

साइमन कमीशन बहिष्कार कार्यक्रम का योगदान

• इसने भारतीय दलों को राजनीतिक मोर्चे पर लामबंद कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध के लिये प्रेरित किया। इससे राष्ट्रीय आंदोलन को नवीन गति प्राप्त हुई।

• इसमें छात्रों की व्यापक भागीदारी रही, जिसके परिणामस्वरूप छात्रों ने पहली बार राजनीतिक अनुभव प्राप्त कर अनेक छात्र संगठनों को जन्म दिया।

• इसने भारतीयों की 'स्वशासन की मांग' को प्राथमिकता क्रम में ऊपर ला दिया तथा भारतीयों द्वारा भारत के संविधान को निर्मित किये जाने की मांग को प्रबलता से उठाया जाने लगा।

• साइमन कमीशन की रिपोर्ट ने भारत सरकार अधिनियम, 1935 के लिये एक आधार के रूप में काम किया। सरकार ने इसकी अनेक सिफारिशों को इस अधिनियम में स्वीकार कर लिया।


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