प्रथम विश्व युद्ध: संघर्ष और युद्ध के कारणों का विश्लेषण World War I: Analysis of the Conflict and Causes of War.
प्रथम विश्वयुद्ध के कारक प्रथम विश्वयुद्ध कोई अचानक घटने वाली घटना नहीं थी।वस्तुतः यह अनेक कारकों के सम्मिलन का परिणाम था। एक ब्रिटिश विद्वान एरिक हॉब्सबॉम ने एक लंबी 19वीं सदी (A Long 19th Century) नामक मुहावरा गढ़ा। इसके अनुसार यह 1789 से आरंभ होकर 1914 में समाप्त हुआ। यह लगभग एक सौ तीस वर्षों के घटनाक्रम में निहित था।

राजनीतिक कारक
जहाँ तक राजनीतिक कारक की बात है तो जर्मनी के एकीकरण ने यूरोप की राजनीति में एक बड़ा उतार-चढ़ाव ला दिया। गौरतलब है कि इस एकीकरण के कारण यूरोप में शक्ति-संतुलन बिगड़ गया। यह यूरोप की अन्य शक्तियों, विशेषकर ब्रिटेन की चिंता का कारण बना।ध्यातव्य है कि जर्मनी का एकीकरण फ्राँस को अपमानित करके हुआ था, अतः जर्मन चांसलर बिस्मार्क को यह डर था कि फ्राँस जर्मनी से प्रतिशोध लेने का प्रयास करेगा। इसलिये वह यूरोपीय राजनीति में फ्राँस को अलग-थलग कर देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने गुटबंदी आरंभ की। इसी क्रम में 1882 में जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इटली को मिलाकर एक त्रिगुट कायम हुआ, परंतु आगे चलकर फ्राँस भी राजनीतिक अलगाव को समाप्त करने में सफल रहा तथा फ्राँस, ब्रिटेन और रूस ने आपस में मिलकर एक दूसरे त्रिगुट का निर्माण किया। हालाँकि, ये दोनों गुट रक्षात्मक गुट थे, परंतु इन गुटबंदियों ने यूरोप की राजनीति को प्रदूषित कर दिया था।
• वस्तुतः दोनों गुट एक-दूसरे से अधिक शक्तिशाली दिखना चाहते थे, इसलिये दोनों के बीच हथियारों की होड़ आरंभ हो गई। इस कारण परस्पर तनाव बढ़ गया।
• इसके साथ ही गुटबंदी के कारण दो देशों के बीच उत्पन्न होने वाला तनाव शीघ्र ही एक अखिल यूरोपीय मुद्दा बन गया।
इस तरह से देखा जाए तो प्रथम विश्वयुद्ध यूरोप में शक्ति-संतुलन स्थापित करने के लिये लड़ा गया था।
आर्थिक कारक
आर्थिक कारक की बात की जाए तो औद्योगिक क्रांति ने बाज़ार एवं कच्चे माल की आवश्यकता को बढ़ा दिया। इस आवश्यकता ने साम्राज्यवाद को प्रोत्साहन दिया, फलस्वरूप बाज़ार के लिये विभिन्न देशों में प्रतिस्पर्द्धा आरंभ हो गई। गौरतलब है कि तत्कालीन समय में सबसे बड़ी चुनौती थी- एक स्थापित शक्ति ब्रिटेन और दूसरी बढ़ती हुई शक्ति जर्मनी के बीच प्रतिस्पर्द्धा। इस प्रकार दो शक्तियों के बीच उभरी प्रतिस्पर्द्धा ने प्रथम विश्वयुद्ध की भूमिका तैयार कर दी।
सामाजिक कारक
इसे सामाजिक साम्राज्यवाद के संदर्भ में समझने की ज़रूरत है,अर्थात् यूरोप के पूंजीवादी देशों ने आंतरिक संघर्ष (वर्ग संघर्ष) को बाहरी मोर्चे पर नियमित करने का प्रयास किया। इस क्रम में उग्रराष्ट्रवाद को प्रोत्साहन मिला। गौरतलब है कि यूरोप में राष्ट्रवाद ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से उग्र रूप धारण कर लिया था। प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे से अपने को सर्वोच्च सिद्ध करना चाहता था। वस्तुतः एक तरफ फ्राँस अपने खोए हुए प्रदेश अल्सास-लॉरेन पर पुनः अधिकार कर राष्ट्रीय भावना को संतुष्ट करना चाहता था तो दूसरी तरफ बाल्कन एवं पूर्वी यूरोप के अन्य राज्यों, जैसे- पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, बोस्निया, हर्जेगोविना, सर्बिया आदि में भी राष्ट्रवादी आंदोलन बल पकड़ रहा था।
बौद्धिक कारक
19वीं सदी से लेकर 20वीं सदी के आरंभ तक कुछ ऐसे चिंतक और विचारक आए, जिन्होंने उग्रराष्ट्रवाद को बल दिया। उदाहरण के लिये डार्विन का विकासवाद ने सामाजिक विकासवाद की अवधारणा का रूप लिया और इस अवधारणा ने राष्ट्रवाद को बल प्रदान किया। उल्लेखनीय है कि 19वीं सदी के एक दूसरे चिंतक हीगेल ने राष्ट्रीय गौरव पर बल दिया। आगे सिग्मंड फ्रायड जैसे एक चिंतक का आगमन हुआ, जिसने मनोविश्लेषण पर बल देकर तर्कवाद की जड़ खोल दी। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इन सभी विचारकों ने उग्रराष्ट्रवाद और आस्था पर बल दिया था।
डार्विन के विचार को हरबर्ट स्पेंसर ने (ब्रिटिश चिंतक) सामाजिक डार्विनवाद के रूप में विकसित किया था। इसके अनुसार, अगर प्रकृति सबल को आगे बढ़ने और निर्बल को मिट जाने की अनुमति देती है तो यही बात समाज पर भी लागू होनी चाहिये। इस आधार पर स्पेन्सर ने सरकार के लोक कल्याणकारी कार्यक्रम का विरोध किया था। सामाजिक डार्विनवाद समाजवाद के समानांतर प्रचंड व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन दे रहा था।
उग्र राष्ट्रवाद ने सामान्य लोगों में भी युद्ध का उत्साह उत्पन्न किया।
कूटनीतिक कारक
कूटनीतिक असफलता भी प्रथम विश्वयुद्ध के लिये उत्तरदायी कारकों में से एक थी। जैसा कि हम जानते हैं कि प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारक सेराजेवो हत्याकांड था। दरअसल ऑस्ट्रिया के राजकुमार आर्कड्यूक फर्डिनेंड की हत्या बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में कर दी गई। इस प्रकार इस हत्या ने चिंगारी का काम करते हुए प्रथम विश्वयुद्ध का विस्फोट पैदा किया। हालाँकि, यूरोप में यह युद्ध की कोई अकेली घटना नहीं थी। इससे पूर्व भी इटली एवं पुर्तगाल के शासकों की हत्या हो चुकी थी, परंतु इसके कारण कोई युद्ध घटित नहीं हुआ था। वस्तुतः इस काल में युद्ध घटित होने का बड़ा कारण था- यूरोपीय राष्ट्रों के बीच कूटनीतिक प्रक्रिया का अवरुद्ध हो जाना। गौरतलब है कि कूटनीतिक प्रक्रिया यदि चल रही होती तो युद्ध का कोई-न-कोई समाधान ढूँढ़ लिया गया होता।
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