मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ( गठन) मध्यप्रदेश 1 नवम्बर, 1956 को अस्तित्व में आया और 1 नवम्बर 2000 को इस मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग हो गया, परन्तु इसके पूर्व (1956 के पूर्व) इतिहास के पन्नों में इसका स्वरूप कुछ और ही था।
सन् 1857 की क्रान्ति ने प्रमुख रूप से सागर-नर्मदा क्षेत्रों को ही प्रभावित किया था। दक्षिण भारत में केवल कुछ छींटे ही पहुँच पाए थे। यही कारण है कि अंग्रेजी इतिहासकारों ने यहाँ की शांति व्यवस्था की खूब सराहना की है। नागपुर के कमिश्नर लाउडन तथा उसके डिप्टी कमिश्नरों ने अपनी रीति-नीति से इस क्षेत्र की शांति व्यवस्था को कभी भी भंग नहीं होने दिया, जबकि उत्तरी क्षेत्र बुन्देलखण्ड एक खौलती हुई कड़ाही की भाँति बन गया था। अतएव भारत के मध्य क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए यह आवश्यक था कि बुन्देलखण्ड का समुचित निपटारा किया जाये।
सन् 1858 में बुंदेलखंड का अंग्रेजी अधिकार क्षेत्र उत्तर-पश्चिम प्रान्त का एक अंग था। उत्तरी बुंदेलखण्ड के झाँसी, जालौन, बांदा और हमीरपुर अंग्रेजों द्वारा कब्जे में ले लिये गये थे और इनका प्रशासन आगरा स्थित लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा होता था। दक्षिण बुंदेलखण्ड जिसे सागर-नर्मदा क्षेत्र कहा जाता था, पेशवा और भौंसला से अंग्रेजों के हाथ में आया था, को सन् 1820 में उत्तरी-पश्चिमी प्रान्त में मिला दिया गया था। मध्य बुंदेलखण्ड के दतिया, ओरछा, छतरपुर और पन्ना आदि क्षेत्रों में अभी भी कुछ सामन्ती राज्य रह गये थे, जो सन् 1857-58 के उपद्रवों के दिनों में सामान्यतः अंग्रेजों के प्रति वफादार थे।
2 नवम्बर, 1861 को एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसके द्वारा भारत शासन ने औपचारिक रूप से "मध्य प्रान्त" की स्थापना की। "सागर-नर्मदा राज्य क्षेत्र" जो नागपुर प्रान्त से लगा हुआ है, एक ऐसा संघ क्षेत्र है जिसका क्षेत्रफल 90 हजार वर्ग मील, जनसंख्या 60 लाख से अधिक और राजस्व कुल मिलाकर साढ़े सात लाख पौंड वार्षिक के लगभग है। यद्यपि इस क्षेत्र के भीतर जाति, भाषा और आचार-विचार की विभिन्नता विद्यमान है, जो इसमें व्याप्त जिले, जांतियाँ तथा वर्गों में से अनेक या तो एक समान हैं या उसमें आपस में ठोस सदृश्य तथा एकरूपता है।"
"प्रस्ताव में वे जिले भी बतलाए गए थे, जो मध्य प्रान्त में समविष्ट किए जाने वाले थे। वे जिले थे- नागपुर क्षेत्र के चांदा, भण्डारा, छिंदवाड़ा, रायपुर, बस्तर तथा कुरोंदा के अधीनस्थ प्रदेशों सहित सिरोंचा और सागर-नर्मदा क्षेत्र के सागर, दमोह, जबलपुर, मण्डला, सिवनी, बैतूल, नरसिंहपुर और होशंगाबाद। प्रस्ताव में प्रान्त के शासन के लिए आवश्यक पदाधिकारियों की संख्या भी उनके वेतनों सहित बताई गई थी।"
1857 के विप्लव के पश्चात् अंग्रेजों का भारतीयों पर से विश्वास उठ गया था। यही कारण था कि उन्हें किसी महत्वपूर्ण व जिम्मेदारी के पदों से वंचित किया जाने लगा। सन् 1861 के परवर्ती काल में प्रान्तों में अनेक विभागों की स्थापना की गई, जैसे जन कार्य विभाग, कृषि विभाग, वन विभाग, शिक्षा विभाग आदि। इन विभागों में भारतीयों को सम्मिलित नहीं किया गया। इन विभागों में अंग्रेज पदाधिकारियों की ही नियुक्ति की गई। "सन् 1913 में देश में 2501 प्रशासनिक तथा न्यायिक नियुक्तियाँ की गई, जिनका वेतन 800 रुपए से अधिक था। इनमें से 2153 पदों पर यूरोपीयवासी, 106 पर आंग्ल-भारतीय और केवल 242 पर भारतीय नियुक्त किए गए।"
सन् 1864 में निमाड़ जिला हस्तांतरित होकर मध्य प्रान्त में सम्मिलित हो गया और इस प्रकार मध्य भारत को एक जिला और मिल गया। निमाड़ जिला पूर्व में पेशवाओं के अधीन था। इसके बाद होल्कर और सिंधिया के मध्य इसका विभाजन हुआ। इस दौरान यह जिला कभी-कभी पिंडारियों के दमन का शिकार भी हो जाता था। "पिंडारियों का आतंक इतना अधिक था कि प्रत्येक गाँव में मिट्टी की दीवारें बनाकर किलेबंदी करनी पड़ती थी। अनेक गाँव को पिंडारियों को भारी धनराशि देकर अपनी सुरक्षा प्राप्त करने के लिए बाध्य होना पड़ा।"
निमाड़ जिले का एक शक्तिशाली किला असीरगढ़ था जो यशवंत राव लाड के अधिकार में था। सन् 1818 में यह अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में आ गया। महाराजपुर की लड़ाई सन् 1844 में हुई, जिसमें सिंधिया पराजित हुआ। युद्ध पश्चात् प्रशासकीय व्यवस्था के तहत् इस जिले को ग्वालियर में रखा गया ताकि अंग्रेजी सेना का व्यय का वहन हो सके। इसका परिणाम यह हुआ कि भू-आगम के ऊँचे निर्धारण के कारण किसानों का शोषण हुआ और वे बर्बाद हो गये। कालान्तर में इस जिले को नवनिर्मित मध्यप्रदेश के साथ जोड़ दिया गया।
मध्यप्रदेश का नक्शा पूरा करने हेतु इस प्रान्त में बरार के मिलाए जाने की संभावना पर विचार करना आवश्यक है। बरार जो मूलतः पेशवा के राज्य क्षेत्र का एक अंग था, मराठा संघ को पराजित करने हेतु अंग्रेजों को सहायता देने के बदले पुरस्कार के रूप में इस शर्त पर निजाम के अधिकार में आया कि वह अपने खर्च में एक सहायक सेना रखेगा, परन्तु शीघ्र ही सेना को वेतन न मिलने की शिकायत होना शुरू हो गई। परिणामस्वरूप सेना को नियमित वेतन दिए जाने के लिए लार्ड डलहौजी को बरार को अंग्रेजी राज्य में मिलाने के लिए पर्याप्त कारण मिल गया। उस समय बरार दो भागों में विभाजित था उत्तरी बरार और दक्षिणी बरार। इनका प्रशासन हैदराबाद स्थित अंग्रेज रेजीडेंट द्वारा संचालित होता था। उस समय उत्तरी बरार का क्षेत्रफल 6,400 वर्ग मील तथा यहाँ की कुल आय 25 लाख 40 हजार 5 सौ रुपए के लगभग थी। इसी प्रकार दक्षिणी बरार का क्षेत्रफल 8,200 वर्ग मील और कुल वार्षिक आय लगभग 7 लाख 70 हजार 8 सौ रुपए वार्षिक थी। दक्षिण बरार में हैदराबाद राज्य के कुछ भाग जैसे हिंगोली आदि सम्मिलित थे। सन् 1857 के विप्लव के समय अंग्रेजों द्वारा हिंगोली सहित दक्षिणी बरार के कुछ भाग निजाम को लौटा दिये गए, साथ ही निजाम के ऊपर से 50 लाख रुपए के ऋण को भी निरस्त कर दिया गया। प्रशासनिक सुविधा को दृष्टिगेत रखते हुए सन् 1858 में अमरावती और अकोला जिले बनाए गए, जबकि अचलपुर और मेहकर को जो पूर्व में जिले थे, को समाप्त कर दिया गया। सन् 1864 में वतमाल को जिला बनाया गया। बुलढाना सन् 1857 और वासीन सन् 1868 में जिला बने। बरार के प्रशासन के लिए हैदराबाद स्थित रेजीडेंट के एक एजेंट को नियुक्त किया गया।
इस प्रशासनिक फेरबदल से जनता नाखुश थी। इसके बावजूद अंग्रेजी शासन का बरार को 25 लाख रुपए में पट्टे पर लेने के निर्णय पर निजाम द्वारा हस्ताक्षर किए गए। परिणामस्वरूप सन् 1903 में बरार मध्यप्रान्त में मिल गया।
मध्य प्रान्त प्रशासन के अधीन 15 आश्रित राज्य थे, जो अलग-अलग डिवीजनों में स्थित थे। इसके अतिरिक्त 116 अन्य आश्रित जमींदारियाँ भी थीं, जिनमें अधिकांश छोटे आकार की थीं। आश्रित राज्यों में 14 राज्य छत्तीसगढ़ डिवीजन में थे। यहाँ स्थित राज्य थे- खैरागढ़, नादगाँव, छुईखदान, बामड़ा, रैहराखोल, सोनापुर, बस्तर और सरगुजा। ये अपने- अपने राजाओं द्वारा शासित थे। इसी प्रकार पटना, कालाहांडी, सारंगढ़, रायगढ़ और वर्धा सीधे शासन के प्रबंधन में थे। मध्यप्रान्त प्रशासित एक आश्रित राज्य मकड़ई जो आकार में अन्यों से सबसे छोटा था, होशंगाबाद जिले में स्थित था। आश्रित्तेर जमींदारों में चाँदा स्थित अहीरी तथा अन्य बिलासपुर जिले में मढ़गाँव, भिलाईगढ़, चांपा, पड़रिया, अपरोहा, लाफा, छुरी, केंदो, कोरवा और संबलपुर जिले में, फुलझर बोरा, संभर, चंदनपुर तथा पदमपुर आदि प्रमुख थे। मध्यप्रान्त का प्रशासन चीफ कमिश्नर द्वारा चलाया जाता था। उसकी सहायता के लिए एक सचिव, एक कनिष्ठ सचिव और एक सहायक सचिव होते थे। अधीक्षण के अपने व्यापक कर्तव्यों के साथ-साथ उसे राजस्व तथा कार्यपालिकाधिकरण के विशेष पर्यवेक्षण का कार्य भी सौंपा गया था। न्यायगत-सम्पत्ति तथा अपराध सम्बन्धी पृथक् रूप से न्यायिक कमिश्नर के अधीन थे। प्रशासनिक कर्मचारी वृंद में चार कमिश्नर, 18 उपकमिश्नर, 13 सहायक कमिश्नर, 33 अतिरिक्त सहायक कमिश्नर और 49 तहसीलदार थे जो 4 खण्डों में विभक्त 18 जिलों में फैले हुए थे। पुलिस दल में 18 जिला सुपरिटेंडेट पुलिस, 2 सहायक सुपरिटेंडेंट, 59 इंस्पेक्टर और 8372 छोटे पदाधिकारी तथा कांस्टेबिल थे, जिनका अनुशासन तथा आन्तरिक सम्बन्धों के विषय में नियंत्रण सामान्यतः इंस्पेक्टर जनरल द्वारा किया जाता था, किन्तु जो अपने कार्यपालिक कर्तव्यों के सम्बन्ध में उप-कमिश्नर के अधीन थे।"
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